ये देश है इन महानों का,
अलबेलों का, कद्रदानों का,
जिसमें सत्याग्रहियों और अहिंसावादियों पर लाठी बरसाया जाता है,
और मकबूल फ़िदा की मौत पर आंशू बहाया जाता है.
अभिव्यक्ति की ये कैसी आजादी,
जिसमे धार्मिक नग्नता परोसने पर, मनोबल बढाया जाता है,
और मकबूल फ़िदा की मौत पर अफ़सोस जताया जाता है.
गर होती इतनी ही चिंता,
तो तड़ीपार न होता था,
और मरने के बाद नहीं,
पहले ही बुलाया जाता था.
ये तो है कुछ और नहीं,
ये तुष्टिकरण की नीति है,
ये सब तो जिन्दा लाशें हो गयीं,
जिनमे आत्मा अब कहाँ बसती है.
जिसने अपनी मातृभूमि को भी नग्न रूप पहनाया है,
आज तुष्टिकरण के वास्ते, सरकार ने आंशू बहाया है.
जिस मातृभूमि के सीने से, तुमने था रक्त पान किया,
उसी मातृभूमि की तस्वीरों का, तुमने था अपमान किया.
भले ही तुम्हारी कृत्यों के, करोड़ों के कद्रदान मिलें,
पर तुम्हारी इन्हीं कृत्यों पर, मरणोपरांत अपमान मिले.
गर जो तुमने मातृभूमि को, अपमानित न किया होता,
तो फिर तुम्हारी मौत पर, माँ ने आँचल में छुपाया होता.
तो सुन लो भारत वासियों,
तो सुन लो भारत वासियों,
मातृभूमि और जननी का, तुम भूले से न करना अपमान,
और अपनी मातृभूमि, देशभक्ति से, देश का रखना सम्मान.
जय हिंद, जय भारत,
भारत माता की जय.